
कांफ्रेंस में एप्लास्टिक एनीमिया, ब्लड कैंसर, शरीर में खून की कमी, प्लेटलेट्स की कमी, बोन मैरो ट्रांसप्लांट, शरीर में बने गांठ की जांच और भ्रांतियां पर चर्चा हुई
RANCHI: 9th वार्षिक ईस्टर्न हेमेटोलॉजी ग्रुप कांफ्रेंस
का समापन रविवार को रांची के होटल रेडिसन ब्लू में हुआ।
तीन दिन तक चले इस कॉन्फ्रेंस में 60 से ज्यादा राष्ट्रीय स्तर के हिमेटोलॉजी के प्रोफेसर शामिल हुए।
कॉन्फ्रेंस के दौरान सिकल सेल एनीमिया पर भी परिचर्चा हुई।
इसमें झारखंड के 120 चिकित्सक शामिल हुए।
कार्यक्रम में डॉ (Col) ज्योति कोतवाल (चेयरपर्सन सह प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ़ हेमेटोलॉजी,श्री गंगाराम हॉस्पिटल दिल्ली ),
डॉ बसब बागची (असिस्टेंट प्रोफेसर सह हेड) हेमेटो ऑकनोलॉजिस्ट, चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, कोलकाता, डॉ अंकिता सेन, कंसलटेंट,
चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, कोलकाता,डॉ देवयेंदु डे ( हेमेटोलॉजिस्ट एवं हेमेटो ऑंकोलॉजिस्ट) बालको मेडिकल सेंटर,रायपुर,
डॉ शैलेंद्र प्रसाद वर्मा (एडिशनल प्रोफेसर एवं क्लिनिकल हेमेटोलॉजी) KGMU,लखनऊ , सिविल सर्जन रांची डॉ प्रभात कुमार,
डॉ गणेश चौहान, रिम्स,डॉ रिशु विद्यार्थी, पटना, डॉ दामोदर दास, गुवाहाटी, डॉ रिजू रानी डेका, असाम सहित देश भर के अन्य चिकित्सक, हेमेटोलॉजिस्ट एवं इससे जुड़े स्वास्थ्य कर्मी ने रक्त विकार, leukemia, Gene therapy एवं Lymphoma जैसे विषय पर अपनी अपनी बाते रखा।
डॉ (Col) ज्योति कोतवाल (चेयरपर्सन सह प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ़ हेमेटोलॉजी,श्री गंगाराम हॉस्पिटल दिल्ली ) ने 9th वार्षिक ईस्टर्न हेमेटोलॉजी ग्रुप कांफ्रेंस के सफल आयोजन के लिए डॉ अभिषेक रंजन सहित पूरी ऑर्गेनाइजिंग टीम को बहुत-बहुत बधाई दिया।
और कहा की इस आयोजन से हेमेटोलॉजी के क्षेत्र में लोगों का ज्ञानवर्धन होगा साथ ही वर्तमान में नई तकनीक के बारे में भी लोगों को पता चलेगा।
झारखंड में सिकल सेल मिशन एवं थैलेसीमिया को लेकर काफी काम हो रहा है।
जिला अस्पताल में सेल काउंट एवं HPLC का मशीन भी लगाया गया है जिससे इसके जांच में काफ़ी सुविधा मिली है।
यहां एक रेफरल सेंटर भी बनाया गया है जहां गर्भवती महिला का सिकल सेल एनीमिया की जांच की जा सके।
लेकिन झारखंड में सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया के मरीज काफी संख्या में है जिनकी जांच एवं इलाज के लिए एक और एक और रेफेरल सेंटर बनाने की आवश्यकता है ताकि मरीजों का अर्ली डायग्नोसिस एवं सटीक इलाज किया जा सके।
यहाँ ब्लड कैंसर के भी मरीज है जिनका सही समय पर डायग्नोसिस और स्क्रीनिंग करना जरूरी है ताकि अर्ली स्टेज में ही इसका पता चल सके।
डॉक्टर को लो ब्लड काउंट( low blood count) और Low TLC वाले मरीजों को पकड़ना बहुत जरूरी है।
इसके लिए हम गांव-गांव में सहिया (आशा) और आंगनवाड़ी वर्कर के माध्यम से लोगों को जागरुक कर सकते हैं साथ ही जिनका टीएलसी और ब्लड काउंट कम है उन्हें सहिया के द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लाया जा सकता है ताकि समय सही समय पर उनका स्क्रीन किया जा सके।
ब्लड कैंसर लाइलाज नहीं है यदि इसका अर्ली डायग्नोसिस और स्क्रीनिंग के माध्यम से पता चल जाता है तो केमोथेरेपी और उसके बाद स्टेम सेल या बोन मैरो ट्रांसप्लांट के माध्यम से मरीज ठीक हो सकते हैं और कई सालों तक जीवन जी सकते हैं।
प्राइमरी हेल्थ और पब्लिक हेल्थ सेंटर में इसे लेकर अवेयरनेस बहुत जरूरी है ताकि इसका सही समय पर सटीक जांच और स्क्रीनिंग हो सके और इलाज की प्रक्रिया शुरू हो सके।
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉ शैलेंद्र प्रसाद वर्मा ने बताया कि रक्त संबंधी बीमारी के मरीज काफी देर से पहुंचते हैं।
वे ऐसी स्थिति में पहुंचते हैं जब हालत खराब हो जाती है।
उन्होंने कहा कि कांफ्रेंस में एप्लास्टिक एनीमिया, ब्लड कैंसर, शरीर में खून की कमी, प्लेटलेट्स की कमी, बोन मैरो ट्रांसप्लांट, शरीर में बने गांठ की जांच और भ्रांतियां पर चर्चा हुई।
EHG के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेट्री डॉ अभिषेक रंजन ने कहा कि झारखंड में हिमेटोलॉजी विभाग देश की तुलना में काफी पीछे है।
जब मरीज को बीमारी का पता चलता है तब तक देर हो जाती है।
ब्लड कैंसर के मरीज भी जानकारी के अभाव में लास्ट स्टेज में पहुंचते हैं।
लोगों को जागरूक करना हमारा उद्देश्य है।
डॉ अजय के महलका (EHG के ऑर्गेनाइजिंग को -सेक्रेट्री) ने बताया की इस ज्ञानवर्धक सम्मलेन में सभी प्रोटोकॉल का पालन किया गया है एवं इस क्षेत्र में आयी नयी तकनीक पर चर्चा की गयी है जो आगे चलकर हेमटोलॉजी के क्षेत्र में काम आएगा।
वही राज्य को एक जनटिक लैब की भी आवश्यकता है ताकि लोगो को जांच को सुविधा मिल सके।
कार्यक्रम मे हेमोटलॉजी पर केस प्रेजेंन्ट करने वाले रेजिडेंस ( चिकित्सक) को सम्मानित भी किया गया।
वहीं सिविल सर्जन रांची डॉ प्रभात कुमार ने कहा कि टीम वर्क के साथ कांफ्रेंस सफलता पूर्वक संपन्न हुआ।
कॉन्फ्रेंस से झारखंड के डॉक्टर को फायदा मिला है. PG के स्टूडेंट, एनजीओ के लोग भी शामिल हुए। तीन दिवसीय इस कांफ्रेंस में 450 से ज्यादा डॉक्टर शामिल हुए।