झारखंड का जितना विकास होना चाहिए था नहीं हुआः राष्ट्रपति

RANCHI: खूंटी में आयोजित महिला स्वंय सहायता समूह सम्मेलन में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने आदिवासी एवं आदिवासियत के परचम को बुलंद करते हुए कहा कि झारखंड का जितना विकास होना चाहिए था नहीं हुआ।

यह देखकर दुख होता है कि 22 वर्ष हो गये राज्य अलग बने हुए।  अधिकांश आदिवासी ही मुक्यमंत्री रहे इसके बावजूद यह स्थिति है।

इससे पहले अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए कहा कि खूंटी की इस पवित्र धरती पर आकर स्वंय को धन्य मानती हूं। पिछले वर्ष भगवान बिरसा मुंडा के गांव जाने का सौभाग्य मिला था।

इस धरती की पवित्र मिट्टी को अपने माथे पर लगाती हूं। भगवान बिरसा मुंडा ने अबुआ राज का नारा दिया था और उन्हीं के आंदोलन से महारानी विक्टोरिया का राज खत्म हुआ।

आश्चर्य होता है कि भगवान बिरसा मुंडा ने अपने 25 वर्षों के जीवन में इतना कुछ कैसे किया। राष्ट्रपति ने कहा कि यह सम्मेलन जनजातीय महिलाओं के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

यह कार्यक्रम राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में जनजातीय समुदाय की महिलाओं के योगदान को आने वाले पीढ़ी को प्रेरित करेगा।

आने वाले दिनों में महिला समूहों के उत्पाद को बाजार मिलेगा। उन्होंने कहा कि ओडिशा से हूं लेकिन झारखंड की खून मेरे शरीर में है। जिस घर में जोभा माझी बहु बनकर गयी है उसी घर से मेरी दादी थी।

इसलिए झारखंड से मेरा बहुत लगाव है। मेरा सौभाग्य है कि मै झारखंड की राज्यपाल रही। आज मै यहां मेहमान बनकर आयी हूं।

अपनी बचपन की याद लोगों से शेयर करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि मेरा खेत गांव से पांच किलोमीटर दूर था। मेरी दादी मुझे रात के दो बजे उठाकर खेत ले जाती थी।

रास्ते में 20 महुआ के पेड़ थे महुआ चुनती थी। 20 पैसे में महुआ बिकता था। आज बहनें महुआ का केक और क्या क्या बना रही है। राष्ट्रपति ने कहा कि यह देखकर खुशी हो रही है कि देर से ही सही महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान तो आयी।

झारखंड का आदिवासी समुदाय दूसरे प्रदेश के आदिवासी समुदाय से बहुत आगे हैं।

सरना धर्म कोड को लागू करवाने की मांग

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति से सरना धर्म कोड को लागू करवाने की मांग की। सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी समुदाय की कुछ मांगे है केन्द्र सरकार से इन्हें लागू करने की अनुमति दिलायी जाय।

इनमें सरना धर्म कोड को लागू करना, हो, मुंडारी और कुड़ुख भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग शामिल है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज यहां केन्द्र सरकार के जनजातीय मंत्रालय के माध्यम से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है।

यह मंत्रालय आदिवासियों के लिए काम करता है। जनजातीय समुदाय का उथान कैसे हो, उनके उत्पाद को बाजार कैसे मिले यह इसी मंत्रालय का काम है।

जिन आदिवासियों के संदर्भ में हमारी केन्द्र और राज्य सरकार काम करती है वही आज ही आदिवासियों के आय के त्रोत को बढ़ाने की चिंता करते हैं।

उसका असर बहुत अच्छा दिख रहा है। यह हम नहीं कह सकते। आज भी आदिवासी कई समस्याओं से जुझ रहा है।

जल जंगल और जमीन ही हमारी पहचान है। आज भी आदिवासी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। वनों में रहने को मजबूर हैं। दो वक्त की रोटी के लिए जुझ रहे हैं। हमारा राज्य पूरे देश को खनिज संपदा से रौशन कर रहा है लेकिन यहां के लोगों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है।

कोरोना काल में हमने देखा कैसे यहां के लाखों मजदूर पलायन करते हैं। भले ही हम विडियो बनाकर दिखाते हैं।

कि हमारे यहां ये काम हो सकता है यह उत्पादन होता है। लेकिन धरातल पर स्थिति अलग है। जब से अर्जुन मुंडा मंत्री बने है तब से इस क्षेत्र में कुछ काम दिख रहा है।

उम्मीद है आगे भी यह दिखेगा। राज्य में 2225 महिला स्वंय सहायता समूह हैं जिसमें 22 लाख महिलाएं जुड़ी है।

वनोपज तो तैयार हो रहे हैं। लेकिन किसानों को लाभ नहीं मिलता है। शहद तैयार होता है किसानों को दो सौ रुपये मिता है और बाजार में पांच रुपये में बिकता है। इस असमानता को दूर करना होगा।

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