आज सेक्स वर्कर्स की बात
इस समय जब देश के सामने कोरोना वायरस की तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा हैं और इसी के साथ देश मे कई अन्य समस्याए भी है । इस बीच हम आज क्यों एक ऐसे वर्ग के लोगों की बात क्यों कर रहे हैं जिनको लोग भारत मे सामाजिक रूप से बहिष्कार करते है ।
जी हाँ हम बात कर रहे सेक्स वर्कर्स की चाहे अब वो gb road हो , कमथिपूरा, मिरगंज , बुधवारपेट जिन्हे हम आम भाषा मे रेड लाइट एरिया कहा जाता है जहा सेक्स वर्कर्स रहती है । मगर दिलचस्प बात यह है की इसके नाम मे सिर्फ लाइट है ज़िंदगी मे बहुत अंधेरा है ।
रेड लाइट एरिया जहा 50 साल पुरानी इमारते उनके भीतर बने तकखाने जर्ज होकर भी खड़े है ये ऐसी कौनसी जगह है जहा पर रहने वाले न तो अपना नाम बता सकती है और न नहीं अपना चेहरा किसी को दिखा सकती है ।
लेकिन इन इलाकों के आस – पास रहने वाले लोग हर दिन किन आशंकाओ से गुजरते होंगे । जब वह कहते होंगे उनका घर , दुकान gb road के पास है तो शहर उनके तरफ कैसे देखता होगा । हमारे और आपके महानगरों मे एक शहर कैसे बचा रह गया है जहा से गुजरना अपने भीतर कई तरह के हादसों गुजरना है ।
इन जगहाओ पर एसी कौनसी मजबूरी बस्ती है जिनके लिए हमारे देश के सुप्रीम कोर्ट को सामने आकर इनके मानवा अधिकार की बात करनी पड़ी । हम बात कर रहे है पिछले साल दिसम्बर महीने मे सुप्रीम कोर्ट ने जब राज्य और केंद्र सरकार दोनों को यह आदेश दिया की वो अपने राज्यों मे जो सेक्स वर्कर्स है उन्हे आधार कार्ड , वोटर आइडी , रैशन कार्ड जारी करे ।
अब आप यह सोच कर देखिए क्या यह अजीब बात नहीं है की आज भी इस देश के एक तपके के लोगों के पास आधार कार्ड तक नहीं हैं ..
सेक्स वर्कर्स को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है ?
अगर हुमए सेक्स वर्कर्स के बारे मे जानना है तो सबसे पहले यह समझ लीजिए की वो सामाजिक रूप से कलंकित और कानूनी रूप से उत्पीड़ित समुदाय से है और देखिए यह तो हम सब जानते है की हमारे समाज का कहना है की ”इज्जत ही औरत का गहना हैं ”।
अब ऐसे मे हमारे समाज मे सेक्स वर्कर्स को अच्छी नजरों से देखा जाता है उन्हे समाज से अलग रखा जाता हैं ।
यह तक की इनके खिलाफ जो कानून बनाया गया है उसमे भी ‘ अनैतिक ‘ शब्द का प्रयोग किया गया है [immoral traffic (prevention) Act,1956 ]।
सेक्स वर्कर्स का इतिहास
दरसल भारत मे लाखों सेक्स वर्कर्स है । ministry of women and child development के सर्वे के अनुसार सिर्फ 2004 मे ही भारत मे 30 लाख सेक्स वर्कर्स है । और ज्यादा तर महिलाये या तो दलित होती है या फिर गरीबी रेखा के नीचे से आती है । और MWCD के सर्वे मे यह पाया गया की 36% उन्मे से नाबालिक थी ।
हमारे देश मे ज्यादा तर महिलाये या लड़किया मानव तस्करी का शिकार होकर ही इस काम मे आती है और सेक्स वर्कर बनती है ।
National crime record bureau के आंकड़ों के अनुसार 95% मानव तस्करी का शिकार हुई महिलाये को सेक्स वर्कर बनने पर मजबूर किया जाता हैं ।
लेकिन ऐसा नहीं है की हर कोई मानव तस्करी का शिकार होकर ही इस काम मे आता है कुछ महिलाये यह काम अपनी मर्जी से भी करती है । और अब आप के मन यह सवाल भी आरहा होगा की ऐसा काम कोई अपनी मर्जी से कैसे कर सकता है तो आप भी सही है ।
क्योंकि 1991 मे पुणे यूनिवर्सिटी के कुछ स्टूडेंट्स ने 5000 सेक्स वर्कर्स किया था और पाया की सेक्स वर्क मे आने से पहले इन महिलाओ ने 250 से भी ज्यादा अलग – अलग काम किए थे । लेकिन सेक्स वर्क मे आने के बाद इनकी कमाई मे उछाल आया जो इनकी आर्थिक जररूरतों को पूरा करने के लिए बहुत जरूरी था । मतलब की मर्जी भी थी और मजबूरी भी ।
अब हुमारे देश के कानून के मुताबिक महिलाये निजी तौर पर तो सेक्स वर्क कर सकती है मगर संगठित तौर पर नहीं ।
अब जैसे की हुमने आपको बताया की ज्यादा तर महिलाये मानव तस्करी का शिकार होकर इस काम मे आती है तो उनके पास कानूनी दस्तावेजों का होना नामुमकिन सा होता है । जिसके वजह से होता है इनके बैंक खाते तक नहीं खुल पाते है तो इनको कोई सरकारी योजनाओ का भी फायदा नहीं मिलता है ।
HIV/AIDS
देखिए यह सच बात है की आम लोगों के मुताबिक सेक्स वर्कर्स मे hiv या aids का खतरा बहुत ज्यादा होता है ।
2014 मे यूनाइटेड नेशन्स के सर्वे के अनुसार भारत मे लगभग 1.6% सेक्स वर्कर्स को hiv/aids है । पहले तो इन महिलयों को इन बीमारियों के बारे मे उन्हे जानकारी नहीं होती है और इन्हे अगर hiv/aids हो भी जाता है तो यह सरकारी अस्पतालों मे जाकर एंटी एलेक्टरोवीयल ड्रग्स नहीं ले पाती क्योंकि इनके पास कोई दस्तावेज नहीं है ।
कोरोना ने किस तरह प्रभावित किया सेक्स वर्कर्स को …
जभी कोई आपातकालीन स्थिति तो इस समुदाय पर बहुत बुरा असर पड़ता है । बैंक खाता ना होने के वजह से नोटबंदी के समय भी सेक्स वर्कर्स पर बहुत बुरा असर पड़ा था । और अब कोरोना बंद के समय भी कुछ ऐसा ही हुआ ।
कोरोना के डर के वजह से लोगों ने रेड लाइट एरिया जाना ही छोड़ दिया । जिससे की ज्यादा तर सेक्स वर्कर्स की कमाई पूरी तरीके से बंद हो गई । जिसके वजह से उन्हे बाजार से काफी ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा । और ऐसा इस लिए हुआ क्योंकि जहा दूसरे वर्ग के लोगों को सरकार के योजनाओ के ताहित राशन बाटा जा रहा था । लेकिन सेक्स वर्कर्स के लिए ऐसा कुछ नहीं किया जा रहा था और अगर आप महाराष्ट्र सरकार को छोड़ दे तो केंद्र से लेकर किसी भी राज्य की सरकारों ने सेक्स वर्कर्स की कोई मदद नहीं की ।
उपाय
अब सवाल उठता है की इसका उपाय क्या है ? क्योंकि अगर मौजूदा हालात को देखे तो 99% सेक्स वर्कर्स अपना काम छोड़ना चाहती है ।
एक लम्बे समय से जो बहस चली आ रही है वो है सेक्स वर्क को decriminalise करने की यह मांग खुद कई सेक्स वर्कर्स संगठन ने ही किया है । इन संगठनों का मानना है की अगर सेक्स वर्क को कानूनी रूप से वैध कर दिया जाए यानि ITPA हटा दिया जाए तो इन्हे बाकी लोगों की तरह एक मिनमम वैज मिल सकता है ,स्वास्थ से जुड़े लाभ , और सरकारी योजनाओ और सुविधाओ का लाभ भी मिलेगा ।
वो अपने काम के जगहाओ को रेगुलेट कर सकते है , ट्रैड उनीऑनस बना सकते है , शोषण से बच सकते है । और ऐसा नहीं है की दुनिया मे कभी पहली बार नहीं हुआ है । ऑस्ट्रेलिया , न्यू ज़ीलैंड , फ़्रांस , जर्मनी मे सेक्स वर्क लीगल है ।
अब सवाल उठ रहा है की सरकार इन परिशानियों के लिए क्या कर रही है । दरअसल सरकार इस विन्टर सेशन मे एक बिल लाने वाली थी जो की स्थगित कर दिया गया है । यह बिल कुछ हद तक सेक्स वर्कर्स की परेशानियों को दूर कर सकता है ।
अब हमारे देश मे सेक्स वर्क को कानूनी रूप से वैध करना चाहिए या नहीं इस पर अलग – अलग राय है ।
लेकिन एक बात से कोई नकार नहीं सकता वो यह है की यह समुदाय हमारे देश मे कई समय से लांछित और उत्पीड़ित है और हम समाज से कुछ बहतर या कम से कम कहे तो सम्मान की उम्मीद तो कर सकते है ।
क्योंकि हम सब यह बेहतर से जानते है की हमारा समाज इन्हे कीन नामों या यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा की कॉनसी गाली देते है ।
यह महिलाये ज़िंदगी की हजारों मुश्किलों से लड़कर , दुनिया से भिड़कर अपना और अपना परिवार का पेट पालती है ।