श्रीकांत जोशी के पुण्यस्मरण कार्यक्रम में, प्रो. केजी सुरेश:- ‘मैंने श्रीकांत जी के सानिध्य में बहुत कुछ सीखा’

भोपाल। राष्ट्रीय स्यवंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ प्रचारक और हिन्दुस्थान समाचार के संरक्षक श्रीकांत जोशी जी की पुण्यतिथि पर पुण्यस्मरण कार्यक्रम को आभासी माध्यम से आयोजित किया गया।

इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार एवं हिन्दुस्थान समाचार के समूह संपादक मा. रामबहादुर राय जी, श्री लक्ष्मीनारायण भाला जी (वरिष्ठ प्रचारक संत समाज के बीच समन्वय का कार्य), डॉ. अशोक वार्ष्णेय जी (राष्ट्रीय संगठन मंत्री, आरोग्य भारती) और वरिष्ठ पत्रकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश जी की उपस्तिथि थी। प्रो. केजी सुरेश बतौर मुख्य वक्ता जुड़े थे, उन्होंने न्यूज एजेंसी की पत्रकारिता : मीडिया और समाज विषय पर विशेष व्याख्यान दिया। इस कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार मयंक चतुर्वेदी जी ने किया।

हिन्दुस्थान समाचार को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाने का सतत प्रयत्न

प्रो. केजी सुरेश ने अपने संबोधन से पूर्व श्रद्धेय श्रीकांत जी को श्रद्धासुमन अर्पित किया। प्रो. सुरेश ने श्रीकांत जी को याद करते हुए कहा कि, ‘श्रीकांत जी की कोशिश थी कि जिन समाचारों को तथाकथित  राष्ट्रीय मीडिया में जगह नहीं मिलता था, उन्हें भी पाठकों तक पहुंचाई जाए। समाज में एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करना उन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझी। हिन्दुस्थान समाचार को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाने का वो सतत प्रयत्न करते रहे। शुरू-शुरू में कुछ लोग  ये सोच रहे थे कि शायद हिन्दुस्थान समाचार बदलते प्रौद्योगिकी युग में जब संवाद समितियों का सार्थकता खत्म होती जा रही है स्वयं को संभाल नहीं पायेगा। लेकिन श्रद्धेय श्रीकांत जी के कुशल मार्गदर्शन में सभी पदाधिकारी निस्वार्थ भाव से जुड़े और उसे एक यज्ञ मानकर अपनी आहुति देते रहे। ऐसा केवल श्रीकांत जी के व्यक्तिगत आकर्षण के कारण संभव हो पाया।’

श्रीकांत जी का सानिध्य

प्रो. केजी सुरेश ने श्रीकांत जी के साथ अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि, ‘मुझे श्रीकांत जी ने शुरुआती दौर में कहा था, ‘आप भी थोड़ा सक्रिय भूमिका निभाएं।’ लेकिन मैं पीटीआई के साथ जुड़े रहने के कारण काफी व्यस्त रहता था। यदि वह अवसर प्राप्त होता तो उनके साथ थोड़ा और काम करने और सीखने का मौका मिलता। लेकिन जितना भी उनका सानिध्य का अवसर मिला वे सीखने  के अवसर थे। उनसे हमने प्रतिबद्धता और समर्पण जैसी बहुत सी चीजें सीखा। आज जब हम उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं तो वह सारी यादें ताजा हो जाती है।’

न्यूज एजेंसी की पत्रकारिता : मीडिया और समाज

उन्होंने अपने विशेष व्याख्यान में आगे कहा कि, ‘मैंने लंबे समय तक एक प्रशिक्षु संपादक से लेकर मुख्य राजनीतिक संवाददाता तक एक यात्रा एजेंसी पत्रकारिता में की। एजेंसी पत्रकारिता की शुरुआत इसलिए हुई थी क्योंकि किसी भी समाचार पत्र के लिए यह संभव नहीं था कि वो देशभर में अपने संवाददाता नियुक्त करें और देशभर की समाचार को एकत्रित करे। विदेशों में भी ये महसूस किया गया कि दुनियाभर के अखबार के लिए यह संभव नहीं था कि वो प्रायोगिक स्तर पर अपने प्रतिनिधि को विश्व के हर राजधानी में नियुक्त कर सके। ये आर्थिक दृष्टिकोण से भी संभव नहीं था। इसलिए ये सोचा गया कि कुछ एजेंसी/संवाद समिति को शुरू करें, जिसके माध्यम से सभी अखबारों, रेडियो स्टेशनों को नियमित रूप से समाचार मिलती रहे। भारत में भी समाचार एजेंसी शुरू हुई। पीटीआई और यूएनआई को गठित किया गया। लेकिन ये दोनों एजेंसी अंग्रेजी में था। उस दौरान दादा साहेब आप्टे ने यह तय किया कि, भारतीय समाचार पत्रों के लिए भारतीय भाषा में समाचार पहुंचे। इस कल्पना से हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी संवाद समिति की स्थापना की।’

प्रो. केजी सुरेश ने बताया कि कैसे हिन्दुस्थान समाचार को अपातकाल के समय विलय कर दिया गया। उन्होंने आपातकाल के उस दौर के बारे में कहा कि, ‘1975 के आपातकाल के दौरान कई सारे समाचार पत्रों को विलय कर दिया गया। संवाद समितियाँ – प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (अंग्रेज़ी), समाचार भारती और हिन्दुस्थान समाचार एकीकृत होकर “समाचार” नामक एक नई संवाद समिति बन गई। इसी समय हिन्दुस्थान समाचार भी अपना अस्तित्व खो बैठा। लेकिन बाद में श्रद्धेय स्वामी जी के प्रयास से वो पुनर्जीवित हो उठा। आज कई सारे समाचार पत्र हिन्दुस्थान समाचार से सेवाएं ले रहे हैं।’

एजेंसी की पत्रकारिता में चुनौती

प्रो. सुरेश ने आगे बताया कि कैसे एजेंसी की पत्रकारिता को चुनौती का सामना करना चाहिए। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि, पिछले कुछ समय से कुछ बड़े एजेंसी ने पत्रकारिता की जगह ‘पक्षकारिता’ अपनाया। उन्होंने जानबूझकर कई खबरों को प्राथमिकता नहीं दी। कुछ समय पहले एक बड़े न्यूज एजेंसी की साक्षात्कार भी विवादों में घिरा रहा।

आज भी डिजिटल प्लेटफार्म आने के बाद ज्यादातर डिजिटल प्लेटफार्म केवल डेस्कटॉप पत्रकारिता करती है। आज भी उनकी समाचारों के लिए उनकी निर्भरता एजेंसी पर ही है।

ये हमारे लिए स्वर्णिम अवसर है जब हम मात्र राजनीतिक, आथिक पक्ष को ही नहीं बल्कि समाज से जुड़े, संस्कृति से जुड़े, लोक कलाओं से जुड़े समाचार प्रदान करें।

आज कंटेंट की बहुत मांग है। एजेंसी और संवाद समिति के पास सबसे ज्यादा कंटेंट है। हमारे प्रतिनिधि गांव-गांव में फैले हुए हैं। जो लोग सोचते हैं कि संवाद समिति का समय समाप्त हो गया वो गलत हैं, संवाद समिति का समय तो अभी शुरू हुआ है।

समाचार का चयन

प्रो. सुरेश ने बताया कि, आज संवाद समिति का दायित्व है कि वो निष्पक्ष समाचार को प्रेषित करे। अपनी संस्कृति और इतिहास से जुड़ी समाचारों को प्रेषित करने की जिम्मेदारी भी संवाद समिति के नाजुक कंधो पर है। हमें ऐसे समाचार को प्रस्तुत करना चाहिए जो राष्ट्रीय एकता को बढ़ाए।

समाचार में सकारात्मकता भी होना चाहिए। लोग नकारात्मक समाचारों से तंग आ गए हैं। समस्या का समाधान समाज में ही है, हमें केवल समाज के आंतरिक ऊर्जा को जगाना है, ताकि वो अपना समाधान ढूंढे।

मैं समझता हूं आने वाले दिनों में संवाद समिति की प्रासंगिकता और सार्थकता और बढ़ेगी।

खबरें एक नजर में….