रामनवमी के शुभ अवसर पर पढ़िए बुंदेलखंड की अयोध्या ओरछा में बिराजे राम की कहानी,जहां के राजा ही राम

(निवाड़ी) : ओरछा बुंदेला शासकों की नगरी है। यहां भगवान राम सरकार यानी राजा के रूप में विराजित हैं। यहां श्रीरामराजा सरकार का भक्तों से राजा और प्रजा का संबंध है। यह देश का एकमात्र मंदिर ऐसा है, जहां पर राजा के रूप में राम राजा सरकार को तीनों समय सशस्त्र सलामी दी जाती है।
राम राजा सरकार मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित रमाकांत शरण महाराज पुराणिक मान्यताओं का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि संवत् 1631 में तत्कालीन बुंदेला शासक महाराजा मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुंअरि गणेश राजा राम को अयोध्या से ओरछा लाई थीं। राजा कृष्ण उपासक थे और रानी भगवान राम की। रानी ओर राजा दोनों में अपने इष्ट की उपासना को लेकर मतभेद रहते थे। एक दिन ओरछा नरेश मधुकर शाह ने अपनी पत्नी कुंअरि गणेश से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा।
रानी तो राम की भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। गुस्से में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। इसके बाद रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। रानी को कई महीनों तक राम के दर्शन नहीं हुए। वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ीं। यहीं जल की अतुल गहराइयों में उन्हें बाल रूपी राम के दर्शन हुए।
सशर्त अयोध्या आए रामलला
राम लला (बाल रूपी राम) को अपनी गोद में आया देख महारानी अभिभूत हो गईं। उन्होंने राम से ओरछा चलने का आग्रह किया। तब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने ओरछा जाने की तीन शर्तें रखीं। पहली वे स्वयं वहां के राजा होंगे, यानी उन्हीं की सत्ता होगी। दूसरी राजशाही पूरी तरह से खत्म हो जाए और तीसरी अपने राज्य का अधिक विस्तार नहीं होने देंगे। इससे भी बड़ी शर्त यह थी कि वे ओरछा तक का सफर रानी की गोद में ही करेंगे। रानी उन्हें जिस स्थान पर गोद से उतार देंगी, वहीं वे बैठ जाएंगे। लंबे सफर को देखते हुए रानी ने पुख्खों-पुख्खों यानी पुष्य नक्षत्र में यात्रा करने की ठानी। राजा को यह संदेश भेज कर कि वे राजा राम को लेकर ओरछा आ रही हैं। पुष्य नक्षत्र में ओरछा के लिए रवाना हो गईं।

Now Ramraja Temple Of Orchha Also Closed For Devotees - कोरोनाः अब ओरछा का रामराजा मंदिर भी भक्तों के लिए बंद - Jhansi News

एक ऐसा मंदिर जहां राम विराजे ही नहीं
रानी का संदेश मिलते ही राजा मधुकर शाह ने राम राजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए चतुर्भुज मंदिर बनवाना शुरू किया। मंदिर भव्यतम बन रहा था इसलिए उसमें समय भी लग रहा था। रानी की राम के प्रति लगन को देखते हुए इस तरह मंदिर बनवाया जा रहा था कि रानी सुबह जैसे ही अपनी आंखें खोलें शयन कक्ष से ही उन्हें राम के दर्शन हो जाएं। पुख्खों-पुख्खों चलते हुए रानी संवत 1631 चैत्र शुक्ल नवमी को ओरछा पहुंचीं।
मंदिर का निर्माण कार्य उस समय अंतिम चरणों में था। इस पर रानी ने राम लला की मूर्ति अपने महल की रसोई में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुहूर्त में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। मंदिर तैयार हुआ, मुहूर्त भी निकला, लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया। क्योंकि राम की यह शर्त थी के वह जहां बैठ जाएंगे, वहां से नही उठेंगे। राम वहां से उठे नहीं और उनके लिए बनाया गया चतुर्भुज मंदिर खाली रह गया। यह मंदिर आज भी उसी अवस्था में है।राजा मधुकर शाह ने त्याग दिया राज
राम स्वयं राजा थे और ओरछा जाने की पूर्व शर्त भी यही थी, इसलिये राम के यहां स्थापित होते ही मधुकर शाह अपना राज छोड़ कर टीकमगढ़ चले गए और ओरछा के सरकार यानी राजा के रूप में ख्यात हुए भगवान राम। शास्त्रों में वर्णित है कि आदि मनु-शतरूपा ने हजारों वर्षों तक शेषशायी विष्णु को बाल रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की तो विष्णु ने उन्हें प्रसन्न होकर आशीष दिया। त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण और कलियुग में ओरछा के रामराजा के रूप में अवतार लिया।

श्री रामराजा मंदिर - ओरछा धाम (@RamrajaMandir) / Twitter

राम राजा को तीनों पहर दी जाती है सशस्त्र सलामी
ओरछा में भगवान राम राजा के रूप में विराजमान हैं इसलिए उन्हें तीनों पहर पुलिस के जवानों द्वारा तीनों पहर सशस्त्र सलामी दी जाती है। उनके अलावा ओरछा परिकोटा के अंदर आने वाले किसी भी विशिष्ट या अतिविशिष्ट व्यक्ति को पुलिस गार्ड ऑफ ऑनर नहीं देती। देश के प्रधानमंत्री से लेकर कई अतिविशिष्ट व्यक्ति कई बार ओरछा आए लेकिन उन्हें सलामी नहीं दी गई। ओरछा के राम राजा सरकार के सामने, प्रजा मान सभी लोग नतमस्तक होते हैं।

 

इंदिरा गांधी को  भी करना पड़ा था इंतजार

31 मार्च 1984 में ओरछा के पास सातार नदी के तट पर चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ओरछा पहुंची थीं। वे मंदिर में दर्शन करने पहुंची, लेकिन दोपहर के 12 बज चुके थे। भगवान को भोग लग रहा था। पुजारी ने पट गिरा दिए थे। अफसरों ने पट खुलवाने की बात कही। इंदिरा गांधी को नियमों की जानकारी दी। वे करीब 30 मिनट इंतजार करती रहीं। इसके बाद रामराजा सरकार के दर्शन कर सकीं।

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